Shani Dev Story : यह हम सभी जानते हैं कि भगवान शिव न्याय प्रिय देवता शनि देव के गुरू हैं लेकिन फिर भी क्या आप जानते हैं कि भगवान शिव को एक बार शनि देव के सामने झुकना पड़ा था। एक गुरू को अपने ही शिष्य के आगे हार माननी पडी थी। नहीं! तो आइए…
Shani Dev Story : यह हम सभी जानते हैं कि भगवान शिव न्याय प्रिय देवता शनि देव के गुरू हैं लेकिन फिर भी क्या आप जानते हैं कि भगवान शिव को एक बार शनि देव के सामने झुकना पड़ा था। एक गुरू को अपने ही शिष्य के आगे हार माननी पडी थी। नहीं! तो आइए आज हम आपको बताते हैं।
Shani Dev Story :पौराणिक कथा के अनुसार एक बार शनि देव भगवान शंकर के धाम हिमालय पहुंचे। उन्होंने अपने गुरुदेव भगवान शंकर को प्रणाम कर उनसे आग्रह किया, हे प्रभु! मैं कल आपकी राशि में आने वाला हूं अर्थात मेरी वक्र दृष्टि आप पर पड़ने वाली है। शनिदेव की बात सुनकर भगवान शंकर स्तब्ध रह गए और बोले, हे शनिदेव! आप कितने समय तक अपनी वक्र दृष्टि मुझ पर रखेंगे।
शनिदेव बोले, हे नाथ! कल सवा प्रहर के लिए आप पर मेरी वक्र दृष्टि रहेगी। शनिदेव की बात सुनकर भगवन शंकर चिंतित हो गए और शनि की वक्र दृष्टि से बचने के लिए उपाय सोचने लगे। यह तो हम सभी जानते हैं कि शनि की वक्र दृष्टि मुश्किलें उत्पन्न करती हैं ऐसे में स्वयं महादेव भी शनि की वक्र दृष्टि से बचने के लिए उपाय सोचने लगे। कहा जाता है कि शनि की दृष्टि से बचने हेतु अगले दिन भगवन शंकर मृत्युलोक आए। भगवान शंकर ने शनिदेव और उनकी वक्र दृष्टि से बचने के लिए एक हाथी का रूप धारण कर लिया। भगवान शंकर को हाथी के रूप में सवा प्रहर तक का समय व्यतीत करना पड़ा तथा शाम होने पर भगवान शंकर ने सोचा, अब दिन बीत चुका है और शनिदेव की दृष्टि का भी उन पर कोई असर नहीं होगा।
इसके उपरांत भगवान शंकर पुनः कैलाश पर्वत लौट आए। भगवान शंकर प्रसन्न मुद्रा में जैसे ही कैलाश पर्वत पर पहुंचे उन्होंने शनिदेव को उनका इंतजार करते पाया। भगवान शंकर को देख कर शनिदेव ने हाथ जोड़कर प्रणाम किया। भगवान शंकर मुस्कराकर शनिदेव से बोले,आपकी दृष्टि का मुझ पर कोई असर नहीं हुआ।
यह सुनकर शनि देव मुस्कराए और बोले, मेरी दृष्टि से न तो देव बच सकते हैं और न ही दानव यहां तक कि आप भी मेरी दृष्टि से बच नहीं पाए। यह सुनकर भगवान शंकर आश्चर्यचकित रह गए। शनिदेव ने कहा, मेरी ही दृष्टि के कारण आपको सवा प्रहर के लिए देव योनी को छोड़कर पशु योनी में जाना पड़ा इस प्रकार मेरी वक्र दृष्टि आप पर पड़ गई और आप इसके पात्र बन गए। शनि देव की न्यायप्रियता देखकर भगवान शंकर प्रसन्न हो गए और शनिदेव को हृदय से लगा लिया।
यह कथा से हमें यह भी संदेश मिलता है कि हमारे सामने चाहे कोई भी हो लेकिन हमें हमेशा सभी के लिए एक समान रहते हुए न्याय को ज्यादा महत्वता देनी चाहिए।
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